16. एक यात्रा - अंतर्मन की - एक पतित
अध्याय १: एक पतित
सारांश: हर मनुष्य के भीतर एक ऐसा पहलू होता है जो उसके गुणों को चुनौती देता है। यह पहलू उसका ही एक भाग है। यही पहलू उसे दुष्टता करने के लिए उकसाता है। इस अध्याय में हम इसी पहलू के बारे में जानेगे। यह केवल एक मिथ्या है कि हम उसे अपने से भिन्न समझते हैं। इसी कारण हम केवल अपने को बाहर के विकारों से बचाते हैं लेकिन अपने अंतर्मन में पनप रही दुष्टता को नाकार देते हैं। हम यह समझते हैं की बुराइयों का जन्म दाता नर्क का स्वामी है जो कहीं और बसता है। इसलिए इस अध्याय में हम नर्क और स्वर्ग को समझने का और कहाँ तक वो हमारी मानसिकता में समा चुके हैं, जानने का प्रयास भी करेंगे? मृत्यु के बाद क्या होगा इसकी जिज्ञासा हमें बनी रहती है। परन्तु हम कैसे अपना जीवन व्यापन करें? हम उसमें क्या परिवर्तन करने का प्रयास करें? अगर हम इन पर विचार करें और उस पर कदम उठायें शायद हम बदल सके की हम अपने अंत को कैसे देखते और उसे स्वीकार करते हैं।
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